शायरी
रवायतें कुछ इस तरह से निभाई गयी
मेरे आँखों के सामने ही मेरी लाश जलाई गयी
दर्द मिलता गैरो से इस उम्मीद मैं थे
गैरो के कंधो पे बदूक अपनों से चलाई गयी
बात ना हमसे बताई गयी
लोगो की ख्वाइसे थी हमको रुलाने की
बस इसलिए सजा सुनाई गयी
मासूमियत थी पहचान जिनकी
उन्हें ही ये जिम्मेदारी थमाई गयी
और जिन्हे उम्मीद थी दर्द पे मरहम की
आगे हम क्या कहे ?

